मुंबै दिनांक - पा . ऊ . स .

वो शाम बारीश कि 
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तुम्हारे जीस्मपर गिरकर मेरे 
होठो पर जो संभ्ली थी
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आज कागजपर उतरतेही पता नही क्यू ...
नंगीसी लगने लगी है
वो शाम ..
वो बारीश कि शाम.....


मुंबै,दिनांक - पा -ऊ - स .
सचिन ठाकूर

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