आज की रात फिर




रात जब सोने की कोशीश मे

आँखे उब जाती है गीन गीन यादों के तारे

और कानों पर तुम्हांरी हसी की उंगलीया

जमा लेती है अपने आप कब्जा

मै चाहकर भी सुन नही पाता रात की लोरी

तुम्हांरी गोद मे जो सुन सकता था मै जब चाहू

तुम्हें गाली देकर खुदको बदनाम कर लीया”,

कहती है मेरी नींदे मुझसे

आज की रात फिर

मुझेही सुनानी होगी  लोरी मेरी नींदोंको….



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